क्या तुम्हें इसी का आदेश दिया गया है? अथवा क्या तुम्हें इसीलिए इस धरा पर भेजा गया है कि एक आयत का खंडन दूसरी आयत से करो? तुमसे पूर्व की उम्मतें तो इन्हीं जैसी चीज़ों के कारण तबाह हुई हैं। तुम्हारा इन बातों से कोई लेना-देना नहीं है। देखो कि ...

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हदीस
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अब्दुल्लाह बिन अम्र (रज़ियल्लाहु अन्हुमा) से वर्णित है कि एक जमात नबी (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के द्वार के पास बैठी थी कि उनमें से किसी ने कहाः क्या अल्लाह ने ऐसा-ऐसा नहीं फ़रमाया है? फिर किसी ने कहाः क्या अल्लाह ने ऐसा-ऐसा नहीं फ़रमाया है? अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने इन बातों को सुना, तो घर से निकले। ऐसा लग रहा था कि आपके चेहरे पर अनार का रस निचोड़ दिया गया हो। फ़रमाया : “क्या तुम्हें इसी का आदेश दिया गया है? अथवा क्या तुम्हें इसीलिए इस धरा पर भेजा गया है कि एक आयत का खंडन दूसरी आयत से करो? तुमसे पूर्व की उम्मतें तो इन्हीं जैसी चीज़ों के कारण तबाह हुई हैं। तुम्हारा इन बातों से कोई लेना-देना नहीं है। देखो कि तुम्हें क्या आदेश दिया गया है, तो उसपर अमल करो और किस बात से रोका गया है, तो उससे रुक जाओ।“
ह़सन - इसे इब्ने माजा ने रिवायत किया है ।

व्याख्या

कुछ सहाबा -रज़ियल्लाहु अनहुम- अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- के द्वार के पास बैठे हुए थे। इस बीच किसी मसले पर उनका मतभेद हो गया। कुछ रिवायतों में है कि उनका मतभेद भाग्य के मसले पर हुआ था। उनमें से किसी ने अपने मत के प्रमाण के रूप में अल्लाह की किताब की कोई आयत प्रस्तुत की, तो किसी ने अपनी बात को सिद्ध करने के लिए कोई अन्य आयत सामने रख दी। उनकी यह बातें अल्लाह के नबी -सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम- ने सुनीं, तो घर से निकलकर उनके पास आए। आप क्रोधित थे और चेहरा बहुत ज़्यादा लाल था। ऐसा मालूम होता था कि आपके चेहरे पर अनार का रस निचोड़ दिया गया हो। आपने उनसे फ़रमाया : क्या क़ुरआन के बारे में यह मतभेद, बहस और झगड़ा ही तुम्हारी रचना का उद्देश्य है? या फिर अल्लाह ने तुम्हें इसी का आदेश दिया है? आप कहना यह चाहते थे कि दोनों में से कोई भी बात नहीं है और इन बहसों की कोई आवश्यकता भी नहीं है। फिर बताया कि पिछले समुदायों की गुमराही का सबब यही मतभेद था। फिर उन्हें उनकी भलाई तथा लाभ की बात बताते हुए फ़रमाया : जिस बात का आदेश तुम्हें अल्लाह दे, उसे करो और जिस बात से रोके, उससे रुक जाओ। इसी के लिए अल्लाह ने तुम्हारी रचना की है और इसी में तुम्हारी भलाई एवं मुक्ति है।

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